Wednesday, 5 September 2018

बिश्नोई और सिख धर्म का तुलनात्मक अध्ययन


बिश्नोई समाज की स्थापना 1485 में हुयी थी और सिख धर्म की स्थापना 1469 में हुयी थी I गुरु नानक जी ने सिर्फ 16 साल पहले सिख समाज की स्थापना की थी I लेकिन आज 550 साल बाद जब हम दोनों की तुलनात्मक अध्ययन करते है तो पाते है कि सिख समाज आज बिश्नोई समाज से हर क्षेत्र में कोशों आगे निकल चुका है I आज सिख समाज को एक अल्पसंख्यक धर्म का दर्जा प्राप्त है I आज सिख समाज सम्पन्नं, सफल और राजनितिक रूप से बहुत रसूखदार समाज है I सिख समाज के अनुयायियों में से भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक बने है I सिख धर्म के अनुयायी भारतीय सेना और वायु सेना के अध्यक्ष भी रह चुके है और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश भी रहे है I राजनेताओ, प्रशासनिक और सैन्य अधिकारियो से तो सिख धर्म भरा पड़ा है I सिख समाज के व्यवसायी दुनिया भर में विख्यात है I कनाडा तथा कई और देशो में सिख धर्म के लोग मंत्री और सरकारी सेवाओ में बड़े पदों पर सेवा दे रहे है I सिख धर्म के लोगो ने दुनिया के लगभग हर देश और हर बड़े शहर में अपने गुरूद्वारे स्थापित किये है और अन्य धर्मो के साथ बड़े तालमेल से रहते है I

आपने कभी सोचा है कि आखिर कैसे हमारे समाज का एक समकालीन समाज सफलता की अनगिनत सीढियां चढ़ने में कामयाब हो गया और बिश्नोई समाज से मीलों आगे कैसे निकल गया? आखिर सफलता की इस कहानी के पीछे कोई तो वजह रही होगी I लगभग ५०० साल के इस सफ़र में सिखों ने सफलता की ऐसी इबारतें लिखी है जो किसी अन्य समाज में देखने को नही मिलती है I हमे किसी और धर्म से तुलना करना उचित प्रतीत नही लगता लेकिन सिख धर्म तो हमारे समकालीन रहा है तो फिर क्यों ना हम तुलनात्मक अध्ययन करके अपने जीवन में सफल होने के लिए कुछ अपनाये और उनसे सीखे I मेरी अध्ययन के अनुसार सिख धर्म को इतना आगे ले जाने के पीछे सबसे बड़ी वजह उनका सामूहिक और सामाजिक सोच रही है I सिखों ने अपने समाज का विस्तार हर क्षेत्र में किया है लेकिन उन्होंने अपनी आस्था, श्रधा को भर्मित नही होने दिया और न ही कम होने दिया और हमेशा अपने गुरु और गुरुद्वारों के प्रति विश्वास और आस्था बनाये रखी है I यकीं मानिये उनकी इसी सामाजिक सोच ने सिखों को इतने ऊँचे मुकाम हासिल करवाए है I वे कहीं भी रह रहे हो उनके लिए आस्था और श्रधेय का विषय गुरुग्रंथ साहिब ही रहा है I उन्होंने अपने आस्था के विषयों को कभी तर्क वितर्क का विषय नही बनने दिया I सिखों की सामूहिक और सामाजिक सफलता की मुख्य वजह भी ये ही रही है I सिख समाज में हर कोई अनुयायी गुरु के सेवक है और १० गुरुओ के अलावा उनका गुरु सिर्फ गुरु ग्रन्थ साहिब है I सिख धर्म में चाहे किसी अनुयायी ने कितना ही बड़ा सामाजिक या सरकारी पद हासिल किया हो वो समाज और गुरुग्रन्थ साहिब के आगे वो महज एक अनुयायी ही है इससे ज्यादा कुछ नही I इसी प्रकार की सोच समाज में हर इनसान को बराबर का दर्जा परदान करती है I वे मेहनत में यकीं रखते है कोई शोर्ट कट से धन कमाना उनकी शिक्षाओ में नही है I गुरुद्वारों में मानवता वाद को बढ़ावा दिया जिसकी वजह से उनकी सोच विकसित हो गयी और वे जातिगत भेदभाव करने से बच गए I मानवतावाद, बड़ी सोच और धार्मिक नियमो के प्रति आस्था ने उन्हें आज इस शोहरत की बुलन्दियो तक पहुँचाया है I वे सामाजिक कर्तव्यो को उतना ही महतवपूर्ण समझते है जितने गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारियों को मानते है I  

जब हम दुसरे धर्म की अपने से तुलना करते है तो स्वयम का आकलन करना बहुत जरुरी हो जाता है I प्रकृतिप्रेमी समाज के रूप में गौरवशाली इतिहास के बावजूद समय के साथ आखिर केसे कुछ विकार हमारे समाज में पनप गये जिन्होंने बिश्नोई समाज की सोच को विकसित नही होने दिया I किसी भी समाज की सबसे बड़ी भूल अपने प्राथमिक मूलभाव से भटककर पथभ्रष्ट होना होती है I और बदकिस्मती से ये ही गलती हमारे समाज में लगातार हो रही है I जहाँ हर बिश्नोई को अपने नियमो के प्रति समर्पित रहकर श्रधा रखनी चाहिए थी व्ही हमने हमारे गुरु की सीख को ही तर्क वितर्क का विषय बना दिया और समय के साथ अपने धार्मिक नियमों से मुह मोड़ लिया I परिणाम स्वरुप समाज की मुलभुत शिक्षाओं को भुला दिया गया I आप सब इस प्रकार की चीजो से वाकिफ तो होंगे ही इसलिए जयादा विस्तार से न कहकर इतना कहूँगा कि समाज में आज वो सब हो रहा है जो गुरु महाराज की शिक्षाओं के एकदम विपरीत है I सिख धर्म का युवा अपने धर्म के प्रति आज भी उतना ही समर्पित है जितने उनके पूर्वज थे Iजबकि हमारे समाज के युवा असल में ऐसा नही है I

 आज तक सिख समाज ने जो भी हासिल किया है वो सिर्फ और सिर्फ अपने धार्मिक आस्था, श्रधा और समर्पण की वजह से प्राप्त किया है I धर्म के प्रति सम्मान ने उन्हें एक समुदाय से धर्म तक का दर्जा दिलवा दिया और हमारा धर्म भी उनके साथ ही स्थापित किया गया था लेकिन आज भी हम एक जाति मात्र है I और हकीक़त तो यह है की हम अपने अस्तित्व को बचाने में भी असफल हो रहे है I समय के साथ हमे अपनी धार्मिक मान्यताओं को और मजबूती से अपने जीवन में आताम्सात करने की जरुरत थी लेकिन एक समाज के रूप अपनी मान्यताओ से भटककर गये और भटके समाज ने गलत रह पकडकर अपना खूब नुकसान करवाया है I अब तो कम से कम ये सीख लेने की जरुरत है और गुरु जाम्भोजी की बताई अति उत्तम और नेक जीवनशैली को जीवन में आदर्श के रूप में अपनाने की आवश्यकता है I आज के बिश्नोई समाज में व्यापत कथाओ के दौर ने गुरु महाराज की आदर्श शिक्षाओ को लगभग भुला दिया है I मैं किसी के धार्मिक विचारो को ठेस नही पहुंचाना चाहता हू लेकिन एक बात को कहना चाहता हूँ किलेकिन कोई किसी एक लोक देवता का गुण गान करता है तो कोई किसी दुसरे लोकदेवता का लेकिन ये कथाकार गुरु महाराज की शिक्षाओं पर जानकारी भी नही रखते है I कथाकारों और उनके फूहड़ गानों के इस्तेमाल ने गुरु महाराज जाम्भोजी की बहुत गहरी शिक्षाओ को हासिये पर धकेल दिया और उन्हें भुलाकर बिश्नोई समाज की एक अलग ही पहचान बना दी है I सिख धर्म में सिर्फ और सिर्फ गुरुग्रथ साहिब का अरदास होता है उन्हें किसी दुसरे धर्म से कोई द्वेष नही है लेकिन उनके लिए गुरु ग्रंथसाहिब ही सर्वोतम है I हमारे जीवन में भी श्ब्द्वानी और २९ नियमो का स्थान सर्वोपरि होना चाहिए I एक बिश्नोई व्यक्ति का जीवन दर्शन २९ नियमो से प्रेरित होना चाहिए I गुरु महाराज जाम्भोजी की उत्तम जीवन शैली हर विश्नोई के दिल में एक सकारात्मक उर्जा का संचार कर सकती है I समाज को आपस में जोड़े रखने तथा समान मानसिकता को विकसित करने में गुरु महाराज जाम्भोजी की शिक्षाए मात्र ही अहम रोल निभा सकती है. एकरूप मानसिकता एक मजबूत समाज की नीव रखती है और एक मजबूत समाज आज के आधुनिक युग में सफल होने के लिए आवश्यक है I आज के युग की दुनिया बहुत भ्रामक है और सनमार्ग से भर्मित करने के लिए अनगिनत तरीके जीवन की राह में आपका इन्तेजार कर रहे है I बिश्नोई समाज के हर इन्सान को ये समझ लेना अति जरुरी है कि सिर्फ और सिर्फ गुरु महाराज की शिक्षाओं के प्रति समर्पण ही उनके जीवन को सरल और सुगम बना सकता है और ये सरल और सुगम जीवन ही आपकी किसी भी क्षेत्र में व्यक्तिगत सफलता के लिए मार्ग प्रशस्त करता है I सिखों ने इस बात को बखूबी समझा और आज वे एक समृद्ध, संपन्न और शक्तिशाली समाज के रूप में उभर पाए है I मुझे उम्मीद है बिश्नोई समाज का हर युवा अपने आपको दुनियाभर में फैली विभिन्न प्रकार की कुसंग्तियो से बचकर गुरु जाम्भोजी की बताई राह पर चलकर समाज को प्रेरित करेगा और हमारा समाज भी शौहरत की नयी इबारतें लिखने में कामयाब होगा I हर एक बिश्नोई की व्यक्तिगत सफलता में ही बिश्नोई समाज की सफलता निहित है I


@ Prakash Bishnoi, PO(Retd), IN

4 comments:

  1. क्योकि सिख एक धर्म के रूप में फला फूला और जबकि विश्नोई एक पंथ के रूप म् उभरा इसलिए कम विकसित हुआ

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    1. अपनी राय रखने के लिए आपका धन्यवाद

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  2. सिख धर्म के अनुयायियों ने इसे एक धर्म के रूप में प्रचारित प्रसारित किया। जबकि, बिश्नोई धर्म के अनुयायी कट्टरपंथी बन गए और इसे एक जाति के रूप में स्थापित कर दिया। कथित संत पाखंडी बनकर हिंदू धर्म के रूप में खुद को ढालने लग गए। इसलिए हम पिछड़ गए।

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    1. कोई समाज जाति है या धर्म, इसे आज राजनैतिक कारणों से देखा जाता है और फिर तय किया जाता है। बिशनोई समाज अनूठी मान्यताओं वाला समाज है और इसे जाति के रूप में स्वीकार कर लेना ही भूल है। हमारे प्रयास होने चाहिए कि बिशनोई समाज को अल्पसंख्यक धर्म का दर्जा प्राप्त हो।

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