पोस्ट को सिमित रखने के लिए बात सिर्फ दूध के उदाहरण तक ही सिमित रखूँगा. आप सोचिये देश की कितनी प्रतिशत जनता गाय भेंस पालती होंगी और उनमे से कितने दुधारू पशु होंगेे I मेरे पास इसके कोई आंकड़े तो नही है लेकिन जब शहरो और गावो में नजर डालता हूँ तो एक विचलित करने वाली तस्वीर उभरकर सामने आती हैi देश की दूध उत्पादन क्षमता एवं बाज़ार और शहरों में उपलब्ध करायी जाने वाली दूध की मात्रा में बहुत बड़ा फर्क है I दूध देश के हर परिवार के सभी सद्स्यों को चाहिए होता है और मिलावट के लिए भी सबसे आसान चीज भी दूध ही है. बस यही कारन है कि आज देश में दूध की कमी होते हुए भी कमी नजर नही आती है I कभी आपने सोचा है कि आखिर ये केसे संभव हो रहा है कि देश के हर परिवार, हर घर में, होटलों में दूध, पनीर, मख्खन और हर तरह की मिठाई जहाँ दूध की जरुरत पड़ती है सब जगह दूध बिना कोई विलम्ब के हर दिन सही वक्त पर दूध उपलब्ध करवाया जा रहा हैI
क्या वाकई हमारे देश में इतना दूध उत्पादन होता है ?
क्या वाकई हमारे देश में इतना दूध उत्पादन होता है ?
हैरानी तो ये सोचकर होती है कि जितना दूध गाय भेंसों से प्रतिदिन लिया जाता है उसका कई गुना दूध देश के शहरो और बाज़ारों में बेचा जा रहा हैI मिलावटखोरी की फेक्ट्रियां रात दिन चल रही है. लोकतान्त्रिक व्यवस्था में सरकारें अपना दायित्व निभाने में नाकाम रही है क्युकी चारित्रिक रूप से गिर चुकी जनता ही तो सबसे बड़ी गुनाहगार है I बड़ी कंपनियां भी इस गोरखधंधे में पीछे नही है. अमूल जैसी डेरी ब्रांड को सप्लाई करने वाले बहुत लोगों को मैं व्यक्तिगत रूप में जानता हूँ और मैं जानता हूँ कि वे किस तरह का दूध अमूल को सप्लाई करते है.
आप ही सोचे चाहे अकाल पड़े या आपदा आये, पशुधन में गिरावट आये इस देश में कमाल हो जाता है कि दूध सब जगह सही वक्त पर उपलब्ध करवा दिया जाता है. यहाँ तक की गर्मियों में जब पशुधन दूध कम देते है और उस वक्त शहरों और देश में दूध की खपत सबसे ज्यादा होती है, तब भी दूध की कमी की कोई खबर नही आती. भागदौड़ भरी जिंदगी में इन सबके बारे में सोचने का वक्त भला किस सज्जन के पास है? जिसको जहाँ से मिलता है दूध खरीद लेते है और फिर दूध के रूप में जहर का सेवन मजबूरन कर ही लेते है. आखिर हर कोई इन्सान तो किसी न किसी तरह की मिलावट में व्यस्त जो है i ढुलमुल लोकतंत्र का नाजायज फायदा उठाने वाले , खाने पिने की चीजों में जहर घोलने वालें पैसे के मोह में पूरी मानवता का नाश करने पर तुले हैI सरकारी नियमो और कानूनों का डर तो छोड़ो ऐसे लोगों को तो भगवान का डर भी नही है. बहुत गहरे मन से सोचने पर भी मुझे मेरे सवाल का जवाब नही मिला कि आखिर कोई भी इन्सान आज मस्त मौला बनकर मानव जीवन को क्यों नही जी लेना चाहता है. मुझे लगता है लक्ज़री जिंदगी की चाहत में आज का इन्सान मनुष्य जीवन का सुकून खो चूका हैI आज के इन्सान की ये सोच कितनी मुर्खता है और कितनी स्मार्टनेस, ये फैसला आप ही करें.
@प्रकाश बिश्नोई, PO (से. नि.)
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