Sunday, 7 July 2019

प्रधानमंत्री जी से "मन की बात"

आदरणीय प्रधानमंत्री जी

नमस्कार

आपके पहले कार्यकाल में आपने काफी सकारात्मक परिणाम वाली नीतियां बनाई थी और दूसरा कार्यकाल शुरु होने से पहले मुझे ही नही पूरे देश को लगा था कि आप दूसरा कार्यकाल पाने की काबिलियत रखते है। हर भारतीय ने सोचा था कि आप वाकई ऐसी नीतियां बनाएंगे जो पूरे देश को बदलकर रख देंगी, मुझे आपकी काबिलियत पर अभी भी कोई संदेह नही है लेकिन आप हमेशा नीतियों का मूल्यांकन अवश्य कीजिये।

प्रधानमंत्रीजी, आपकी सार्वजनिक सभाओं में हमने हमेशा राष्ट्रवाद,हिंदूवाद, सनातन संस्कृति, सैनिकों के प्रति संवेदनशील होने के भाषण सुने हैं लेकिन बन्द कमरों में आपकी सरकार द्वारा बनाई गयी सरकारी नीतियां जब बाहर निकलकर जनता के सामने आती है तो वे आपके सार्वजनिक जीवन में दिए गए बयानों से एक दम पलटकर होती है।प्रधानमंत्री जी, आखिर ये ऐसा क्यों हो रहा है? प्रधानमंत्री जी क्या आपको नही लगता कि धार्मिक आधार पर तुष्टिकरण ने देश को बर्बादी के राह पर धकेला है और धर्म के आधार पर स्कॉलरशिप देकर आप भी उसी तरीके से देश को चला रहे है। आप भारत को 5 ट्रिलियन वाली अर्थव्यवस्था बनाना चाहते है ये सबके लिए गर्व की बात है लेकिन क्या पूंजीवाद आधारित अर्थव्यवस्था भारत के उन करोडों लोगों की उम्मीदों पर खरी उतर पाएगी जिन्होंने आपको बहुत उम्मीदों से प्रधानमंत्री पद तक पहुंचाया है? पूंजीवाद आधारित अर्थव्यवस्था भारत में गरीब और अमीर में बन खाई को और बढ़ा देगी।

बड़े बड़े थिंक टैंक, नीति आयोग, कई मंत्रालय जो सरकारी खर्च पर चल रहे है वो सब मिलकर भी देश निर्माण के लिए ऐसे सुझाव नही दे पा रहे है जो देश की जनता से सीधे संपर्क से मिल सकते है। हर सरकारी नीति का निर्माण थिंक टैंक और सलाहकारों के बजाय सीधे जनता से संवाद करके बनाई जाएगी तो बेहतर परिणाम देने वाली साबित होगी। किसानों, और मजदूरों को आज संभल प्रदान करने की जरूरत है। किसानों को फसल का उचित दाम मिले ये सुनिश्चित करना होगा और बिचौलियों को खत्म करना होगा ताकि महंगाई को काबू में किया जा सके । आज किसान द्वारा फसल के लिए किया गया खर्च भी वसूल नही हो पा रहा है। किसानों से बहुत कम दाम पर अनाज, फल और सब्जियों को बिचोलिये खरीदते हैं और शहरों में ऊंचे दाम पर आप जनता को बेचकर मोटा मुनाफा कमा लेते हैं। सरकार को किसानों के लिए कुछ इस तरह का इंतजाम करना होगा ताकि वो अपना फसल, अनाज, सब्जियां सीधे बाजार में बेच सके। इससे किसान को उचित दाम भी सुनिश्चित हो जाएगा और बिचौलियों का कब्जा भी धिरे धीरे कम हो जाएगा। फसलों का बीमा योजना का इस्तेमाल सिर्फ कंपनियों को मार्केट प्रदान करने का नही होना चाहिए आज फसल बीमा के नाम पर बीमा कंपनीयां किसानों का शोषण ही कर रही है। किसानों के लिए योजना बनाने वक्त सीधे किसानों से संवाद करने की जरूरत है।
सरकार को ऐसी नीतियों को बनाने पर जोर देना चाहिए जिससे गरीब, ।मजदूर, गाँव में अंतिम छोर पर बैठे व्यक्ति को फायदा मिल सके। देश का आर्थिक विकास होना चाहिये लेकिन उस विकास का क्या फायदा जो सिर्फ गिए चुने उद्योगपतियो तक सीमित न रह जाये इस दिशा में सरकारी कदम उठाए जाने चाहिए। सबको साथ लेकर चलना ही होगा वरना देश को विकास के राह पर चलाने के लिए कही गृह युद्ध जैसे हालात ना पैदा हो जाये।
सरकार द्वारा मूलभूत आवश्यकताओं पर ध्यान देंने की आवश्यकता है। समस्या को दरकिनार करके ज्यादा ही उलझा रहे है। समझदारी इसी में है कि समय रहते ही सुलझा लिया जाए।

आज देश मे आर्थिक विकास सिर्फ सरकारी फाइलों में दिख रहा है। बाज़ारों के हालात अच्छे नजर नही आते है। विजय माल्या, ललित मोदी, नीरव मोदी जैसे ना जाने कितने लुटेरे सरकारी नीतियों का फायदा उठाकर दूसरे देशों में बस गए उन्हें पैसे के दम पर कई देश नागरिकता भी देने को तैयार है। भारत सरकार को ऐसे कानून बनाने ही होंगे जो इस तरह के व्यापारियों पर कानूनी लगाम लगा सके और डेढ़ की अर्थव्यवस्था को बर्बाद होने से रोक सके।
इसमे कोई शक नही है कि भगोड़े उद्योगपतियों के द्वारा लुटाये पैसे की वसूली सरकार आम भारतीय की जेब से ही करेगी। क्या एक सामान्य भारतीय नागरिक होने के नाते ये बातें आपके समक्ष प्रस्तुत नही कर सकता।

भारत की जनसंख्या बहुत ही तेज रफ्तार से बढ़ रही है और धार्मिक कट्टरता भी उसी अनुपात में हावी हो रही है। क्या इसमे सरकार को विचार करके सख्त कानून नही बनाना चाहिए?
भारत सरकार में नीतियों का निर्माण का तरीका बदलने की जरूरत है। जनता की सामुहिक मंशा को धयान में रखकर ही नीति निर्माण होना चाहिए।
क्या इतना बड़ा देश सिर्फ ओलिंपिक में 2-4 मेडल ही जीतने लायक खिलाड़ी दे सकता है? सिर्फ नीतियों का प्रासंगिक नही होना ही मुख्य कारण है जो देश को नई ऊंचाइयों पर पहुंचने से रोक रहा है।
बहुत मुद्दे है लेकिन अब बस इतना ही लिखूंगा शायद ज्यादा लम्बा पत्र आ भी नही पढ़ेंगे।

@एक भारतीय नागरिक।

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