Monday 15 July 2024

बेलगाम भारतीय नौकरशाही

              बेलगाम नौकरशाही 


भारत के पहले गृह मंत्री सरदार पटेल ने नौकरशाही को देश का "Steel Frame कहा था । लेकिन समय के साथ वो "Steel Frame" अब "Stale Frame" में तब्दील हो गया है। आजादी के साथ ही जनहित में नौकरशाही को राज्य की शक्तियों से एंपावर किया गया था ताकि लोकतंत्र में वे नींव का पत्थर बनकर राज्य के प्रतिनिधि के रूप में जनता के प्रति अपना संवैधानिक दायित्व निभा सकें। नौकरशाही के संदर्भ में आजादी के साथ ही हमारे नेताओं की पहली गलती ये थी कि उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के लिए काम करने वाले नौकरशाहों को ही पब्लिक सर्विस के लिए जारी रखा था। क्या अंग्रेजी हुकूमत के लिए काम करने वाले नौकरशाह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए उपयुक्त थे। मुझे लगता है कि किसी उदंड इन्सान को एक दिन में नही सुधार सकते है तो पूरी की पूरी इंपीरियल सर्विस की जमात जो राजतन्त्र के लिए काम करती थीं उसे हमारे लोकतन्त्र के लिए हमारे उन दिनों के नेताओं द्वारा कैसे उचित मान लिया गया था? ब्रिटिश शासन में राजा के लिए जवाबदेह नौकरशाही लोकतन्त्र के सर्वथा अनुपयुक्त ही थी । ब्रिटिश हुकूमत का डंडा लेकर चलने वाले नौकरशाह आजाद भारत में पेन लेकर जनता की सेवा कैसे कर संकेंगे? इस पहलू पर शायद हमारे उस काल के नेताओं ने विचार भी नहीं किया था।  उसी के चलते भारत की वर्तमान नौकरशाही में भी ब्रिटिश कोलोनियल हैंगओवर आज भी जारी है और नौकरशाही लोकतन्त्र में जनता के प्रति कभी जवाबदेह नहीं बन पाई । आज तो हालात ऐसे है कि हमारी बेहद ताकतवर नौकरशाही "बेलगाम" हो चुकी है और आम जनता को किसी कीड़े मकोड़े की तरह कभी भी कुचल देती है। आप चिंतन करें कि क्या 140 करोड़ नागरिकों के देश की ब्यूरोक्रेसी में सिर्फ कुछेक परिवारों की ही हिस्सेदारी पीढी दर पीढी होनी चाहिए? आज भारत में "नौकरशाही" चंद नौकरशाह परिवारों की पारिवारिक इंडस्ट्री बन कर रह गई है । 

आज़ाद भारत में राज्य के नौकरशाहों की नियुक्ति आज भी अंग्रेजों द्वारा संचालित संस्था द्वारा ही की जा रही है। इसके अलावा अवांशित राजनीतिक हस्तक्षेप और गैर जिम्मेदाराना राजनीतिक रवैए के चलते राज्य की लगभग तमाम संस्थाओं की constitutional mortality या तो खत्म हो चुकी है या फिर खत्म होने की कगार पर है। नतीजन ऐसे ऐसे नौकरशाह राज्य द्वारा जनता पर थोप दिए जाते हैं जो सिर्फ पदों का दुरूपयोग करके अरबों रुपए बनाने के लिए सरकारी नौकरी में आते हैं। देश की नौकरशाही में रिफॉर्म सिर्फ भारत की जनता द्वारा वर्तमान नौकरशाही के स्वरूप पर सवाल उठाए जाने से ही संभव है। भारत की सरकारों को चाहिए कि वह अपने नौकरशाहो को जनता के प्रति जवाबदेह बनाने के प्रयास करे। लेकिन ऐसे प्रयास सरकार में किसी भी स्तर पर होते हुए कभी नजर नहीं आए है। आम जनता को दरअसल राजनीति में जड़ें जमाए हुए नेताओं से मुश्किल सवाल पूछे जाने चाहिए थे लेकिन दुर्भाग्य से आम जनता राजनीतिक दलों में बंट चुकी है और राजनीतिक दल को राष्ट्र  से बड़ा समझ बैठी है। आज जनता इन राजनितिक दलों से सवाल पूछने के बजाय नेताओं की भक्ती में लीन है। ऐसे हालातों में भला बड़े पैमाने पर रिफॉर्म कौन करेगा? बेलगाम हो रही नौकरशाही में रिफार्म कैसे संभव होंगे? नेताओं ने राजनीतिक को व्यवसाय समझ लिया है और इस व्यवसाय में नौकरशाही इन नेताओं का एक्टिव पार्टनर बन चुकी है। 

आजकल पूजा खेड़कर का नाम चर्चा में आया है। इनसे पहले भी अनेकों नौकरशाह अपने self serving attitude के चलते चर्चा में आए है लेकिन कभी किसी नौकरशाह के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई "राज्य " द्वारा नहीं की गई है। ट्रेंड तो कहते है कि ऐसे नौकरशाहों के अपने "गॉडफादर" होते हैं जो इन्हे हर बार बचा ही लेते हैं। भारत की आम जनता में "लोकतंत्र" शब्द की जब तक समझ विकसित होगी तब तक ऐसे नौकरशाह लोकतंत्र और इसके नागरिकों को अपने जूते की नोक पर ही चलाते रहेंगे, भारत हमेशा से ही लुटता ही रहा है। कभी तुर्क तो कभी मंगोल तो कभी अरब, कभी मुगल तो कभी अंग्रेज भारत को लूटते रहे थे। आज कहने को तो देश आज़ाद है लेकिन लूट अभी भी जारी है। एक हजार साल की गुलामी के दौर ने भारत की जनता का बहुत कुछ छीन लिया है लेकिन इतना खोकर भी भारतीय जनता आज भी गहरी नींद में सो रही है और जनता के लिए नियुक्त नौकर जनता को लूट कर धन कुबैर बन रहे हैं। लगता है भारत के किस्मत में आजादी तो लिखी थी लेकिन सजग नागरिको का समाज उसके किस्मत में नहीं है।


प्रकाश बिश्नोई 

Monday 14 December 2020

खेजड़ली धाम, जोधपुर – एक असाधारण वृतान्त

 

कई सालों बाद आज एक ऐसे ऐतिहासिक, अदभुत, रमणीक, पवित्र, और पृकृति के बेहद करीब अपनी पहचान रखने वाली जगह लौटकर मैंने अपने आपको धन्य महसूस किया I ये जगह कोई राजा रजवाड़ों की ऐशो आराम की जगह नही बल्कि मानव इतिहास में त्यांग और बलिदान का ऐसा उदाहरण है जिसका समूचे विश्व और मानवजाति के इतिहास में कोई दूसरा उदाहरण नही मिलता है I पृकृति को अपनी जान से ज्यादा प्यार करने वाले अपने समाज के पूर्वजों की शौर्यगाथा को अपने दिलोदिमाग में संजोये हुए जब आज खेजड़ली गाव की मिटटी पर पहला कदम रखा तो ऐसे अतुलनीय बलिदानियों के स्मरण ने अनायास ही मुझे उस मिटटी को चूमने को प्रेरित किया खेजड़ली में पहुंचकर मुझे ये अहसास बार बार हो रहा था कि ये कोई साधारण मिटटी नही है I इस मिटटी में तो मेरे समाज के बलिदानी महापुरुषों की मोहक यादें शामिल है जिन्होंने हरे वृक्षों की रक्षा की खातिर अपना जीवन ख़त्म करना भी सस्ता सौदा मानकर अपने प्राणों का बलिदान दे दिया लेकिन जीते जी हरे पेड़ कटने नही दिए I सेकड़ों वर्ष पहले अपने जीवन का बलिदान करने वाले बिश्नोई समाज के उन महान बलिदानियों के निर्जीव शरीर आज वहां की मिटटी में मिलकर उस गाव की मिटटी के पवित्र बन जाने का कारन बन चुके थे I ऐसी पावन धरा पर बने शहीद स्मारक की मिटटी को अपने सीश पर तिलक के रूप में लगाने से अपने आपको रोक नही पाया I दोस्तों, मैं कहानी बयाँ कर रहा हूँ एक छोटे से गाव जो कभी खेजड़ली नाम से जाना जाता था की, जो अब एक साधारण गाव नही बल्कि पवित्र खेजड़ली धाम, जोधपुर के नाम से विख्यात है I   

सर्द हवाओं के बीच, सुबह नौ बजे, जोधपुर से करीब २० किलोमीटर दक्षिण पूर्व की तरफ बसे हुए खेजड़ली धाम के लिए हमने यात्रा शुरू की I मेरे साथ मेरी अर्धागिनी और मेरा छोटा बेटा था. जोधपुर का दक्षिण पूर्व शहरी इलाका  सेन्य छावणी क्षेत्र है और यहाँ के आसमान में अमूमन हर दिन वायुसेना के गगनभेदी आवाज करने वाले जंगी विमानों को उड़ते देखा जा सकता है I झालामंड इलाके को पार करते हुए कुछ ऐसे ही गगनभेदी आवाज वाले जंगी विमान हमारे बेहद कम ऊँचाई से उड़ते नजर आये थे I मेरे ७ वर्षीय बेटे के लिए ये बेहद रोमांचित करने वाला दृश्य था I हमारी गाड़ी सर्द हवाओं को चीरते हुए हमें पवित्र खेजड़ली धाम की ओर बढा रही थी. सडक के दौनों ओर खेतों में कहीं कहीं गेहूं की फसल तथा सब्जियां उगाई हुयी नजर आ रही थी I सडक के दोनों तरफ सेंड स्टोन से बने हुए आकर्षक मकान, उनके पास खड़ी सफेद कारें तथा ट्रक जैसी बड़ी गाड़ियाँ इलाके में रहने वाले लोगों के साधन सम्पन होने की गवाही दे रही थी I रास्ते में  हमने देखा कि खेजड़ली धाम के आसपास के ग्रामीण इलाकों में बसने वाले बिश्नोई समाज की महिलाओं के जत्थे अपने हाथों में बाजरी और घी लिए हुए श्रधानवत सडक के किनारे पैदल चलते हुए ही शहीदी स्थल की तरफ बढ़ रहे थे I पैदल चल रही महिलाओं के कुछ जत्थे भजन गाते नजर आ रहे थे तो अन्य जत्थे शायद बातूनी थे जो बातों में मशगुल होकर आगे बढ़ रहे थे लेकिन सभी महिलाओं के हाथों में पक्षियों के लिए चुग्गे के लिए बाजरी के दानों की गठरी और शहीदी स्थल पर यज्ञ में आहुति देने के लिए घी साथ में लेकर जाना सभी के इस धाम के प्रति गहरी श्रधा को दर्शा रहा था I

बिश्नोई धर्म के सस्थापक श्री गुरु जाम्भोजी ( 1451-1536 ) ने अपने अनुयायियों को अमावस्या के अवसर उपवास की सीख दी थी जो उनके परलोकगमन के सेकड़ों वर्षों बाद भी बिश्नोई समाज के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी २९ नियमों के रूप में उनकी शिक्षाओं को जाम्भानी जीवन दर्शन के रूप में आत्मसात किये हुए है I सोमवती अमावस्या को सनातन संस्कृति में बहुत ही दुर्लभ संयोग माना जाता है इसलिए आज शहीदी स्थल पर श्रधालुओं की सख्या भी थोड़ी ज्यादा थी I शहीदी स्थल पर बने मंदिर में जाम्भानी जीवन दर्शन के अनुसार शबदवाणी के १२० शब्दों के उच्चारण द्वारा संतों के सानिध्य में यज्ञ का आयोजन हो रहा था I यज्ञ की पूर्णाहुति के बाद संतों द्वारा गुरु जाम्भोजी द्वारा स्थापित पाहल देने की परम्परा का पालन किया जाता है जिसमें आये हुए तमाम श्रद्धालु शामिल होते है I खेजड़ी, नीम, जाल बेरी तथा कई अन्य किस्मों के हरे भरे पेड इस पवित्र खेजड़ली धाम की शौभा में चार चाँद लगाते है I इस शहीदी स्थल पर शहीदों की याद में हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष दसमी को विशाल सामाजिक मेले का आयोजन होता है I प्रति मास अमावस्या जैसे अवसरों पर भी देश और राज्य भर के दूरदराज के इलाकों से बिश्नोई समाज के लोग यज्ञ में आहुति देने के लिए आते है I शहीदी स्थल पर एक शौभायमान तथा विशाल मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है जिसकी प्राणप्रतिष्ठा अभी हुयी नही हैI

दरअसल इस धाम की कहानी बहुत ही मार्मिक और पीड़ादायीनी है I पेड़ों और वन्यजीवों के सरक्षण के क्षेत्र में राजस्थान के बिश्नोई समाज की पहचान यूं ही रातों रात नही बन पाई है बल्कि प्रुकृतिप्रेम की बलिदान गाथा इसी गाव से शुरू होती है I दरअसल राजस्थान के इस रेगिस्तानी क्षेत्र को हराभरा रखने के लिए बिश्नोई समाज की १५ वी सदी में स्थापना के बाद बिश्नोई लोगों ने आज तक सतत रूप से बलिदान दिए है I आज पर्यावरण सरक्षण के लिए अनूठी पहचान रखने वाला ये पवित्र खेजड़ली धाम आज से सदियों पहले भी हराभरा और सम्पन गाव था जिसमें बिश्नोई समाज के लोग अपने खेतों में हरे भरे पेड़ों को काटते नही थे. जोधपुर राज्य के अधीन आने वाले इस खेजड़ली गाव के बिश्नोई लोगों का पृकृति प्रेम उन हरे भरे विशाल खेजड़ी (Prosopis cineraria) के पेड़ों की हरियाली से सहज ही दिखाई पड़ता था I जोधपुर के तत्कालीन राजा अभय सिंह को अपने किले में चल रहे निर्माण कार्यों के लिए इस्तेमाल हो रहे चुने को जलाने के लिए लकड़ियों की आवश्यकता की पूर्ति हेतु इस गावं के खेजड़ी के पेड़ों को काटने का हुकुम दे दिया और कारण स्वरुप जोधपुर दरबार के सैनिकों ने दीवान गिरधर दास भंडारी के नेतृत्व में इस गावं में खेजड़ी के पेड़ काटने के लिए डेरा दाल दिया था बिश्नोई समाज के लोगों ने अपने खेतों के हरे भरे पेड़ों को नही काटने के लिए राजा के सैनिकों को विनती और प्रार्थनाएँ की लेकिन राजा के सैनिक पेड़ों को काटने पर आमादा थे I हरे भरे पेड़ों को अपने जीवन से भी कीमती बताकर अमृता देवी बिश्नोई ने “सिर सान्टें रुख रहें तो भी सस्तों जाण” कहकर खेजड़ी के पेड़ से चिपक गयी लेकिन राजा की सेना ने 12 सितम्बर 1730 को देखते ही देखते अमृता देवी बिश्नोई समेत पेड़ों से चिपके हुए ३६३ बिश्नोई महिलाओं, बुजुर्गों तथा बच्चों को पेड़ों के साथ ही काट दिया I मानव इतिहास की ये कहानी पुराने दौर में सामंती मिथ्या अहंकार और पृकृति लिए के लिए निस्वार्थ त्याग के बीच हुए अवांषित संघर्ष में मानवीय मूल्यों को हुए नुकसान की कहानी है I लगभग तीन सौ साल पहले पर्यावरण सरक्षण के लिए दी गयी सामूहिक शहादत को इस गाव के लोग बड़े प्रेम और लगाव से गर्व के साथ आज भी याद करते है और शहीदों की याद में हर अमवस्या को यज्ञ किया जाता है I आज बिश्नोई समाज के उन असाधारण बलिदानियों का नाम मानव इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है I 

समय के साथ सामंती दौर तो बीत गया और देश में लोकतत्र की स्थापना हो गयी लेकिन ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि मानव इतिहास की इस अनूठी मिसाल को भी लोकतात्रिक व्यवस्था ने राजनेतिक कारणों से वो सम्मान नही मिलने दिया है जिसका शहीदी स्थल पवित्र खेजड़ली धाम, जोधपुर हकदार है हालाकि खेजड़ली बलिदान को पहचान दिलाने के लिए भारत सरकार द्वारा पर्यावरण सरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वालों को हर साल अमृतादेवी बिश्नोई के नाम से सम्मानित जरुर किया जाता है आजाद भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था द्वारा भले ही मानवता को राह दिखाने वाले बलिदानियों की इस शौर्य गाथा को विश्व पटल पर उचित स्थान दिलाने की प्रयाप्त कोशिशें भले ही नही की गयी हों  प्रुक्रुतिप्रेमी समाज ने अपनी गौरवशाली इतिहास को संजोये रखने के लिए भरपूर कोशिशें की है I 

बिश्नोई समाज के पूर्वजों ने पेड़ों के लिए कुर्बान होकर पूरी मानवता को एक ऐसी जिम्मेदारी दे दी है जिसे निभाना आज हर मानव मात्र का पहला फर्ज है I हमें आज की आधुनिकता की अन्धी दौड़ में उन महान ३६३ बलिदानियों के पृकृति के प्रति निस्वार्थ त्याग को भूलना नही है बल्कि मानवता की आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करने के लिए आज हमें हर वो कदम उठाना है जो एक कृतज्ञ समाज को उठाना चाहिए I ३६३ शहीदों की इस बलिदानी भूमि पर पूरा दिन बिताने के बाद भविष्य में फिर दुबारा लौटकर आने के प्रण के साथ हमने दिन ढलने से पहले अपने घर की और प्रस्थान प्रारंभ किया. मुझे विश्वास है कि आप भी अपना कीमती वक्त निकालकर इस शहीद स्थली पर पहुंचकर उन शहीदों की याद में होने वाले यज्ञ में आहुति जरुर देना चाहेंगे.

आदर सहित आपका अपना

प्रकाश बिश्नोई

Tuesday 11 August 2020

जनता और भारतीय लोकतंत्र

 10 जुलाई को राजस्थान पुलिस के विशेष कार्यबल (SOG) ने राज्य में विधायकों की खरीद-फरोख्त और निर्वाचित सरकार को अस्थिर करने के आरोपों में एक मामला दर्ज किया था। SOG पुलिस बल का ही एक अंग होने के नाते गृहमंत्री के अधीन कार्य करती है। और राजस्थान के मुख्यमंत्री ही गृहमंत्री का कार्यभार संभाल रहे हैं। तो ऐसे में ये स्पष्ट है कि मुख्यमंत्री के इशारे पर ही राज्य के मुख्यमंत्री ,उपमुख्यमंत्री, और सरकार के उप मुख्य सचेतक को ये नोटिस थमाए गए थे। शायद लोकतात्रिक भारत के इतिहास में इस तरह का ये पहला वाकया था जब पुलिस विभाग के मुखिया ने ही स्वयं तथा उपमुख्यमंत्री को बयान देने के लिए नोटिस दिया था। इस तरह के नोटिस जारी होने पर मीडिया और जनता में एक तरह से कौतूहल का माहौल बन गया था। मीडिया और जनता सब अपने अपने तरीके से सरकारी कार्यप्रणाली पर चर्चा कर रहे थे। कुछ लोग इसे राजनीतिक पैतरेबाजी मान रहे थे तो कुछ राज्य सरकार के अस्तित्व पर आने वाले संकट की आहट बता रहे थे। दरअसल राज्य में राज्यसभा चुनाव से पहले सत्तारूढ़ कांग्रेस के कुछ विधायकों को प्रलोभन दिए जाने का आरोप स्वयं मुख्यमंत्री ने लगाया था। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा था कि राज्यसभा सीट जीतने के लिए विधायकों को विरोधी दल द्वारा प्रलोभन दिया जा रहा है करोड़ों रुपये कैश जयपुर ट्रांसफर हो रहा है। इस तरह के खुले आरोप लगाने से जाहिर होता है कि मुख्यमंत्री को शक हो गया था कि राज्यसभा सीटों के चुनाव के साथ साथ विरोधी दल उनकी सरकार को भी हटाने के लिए मोहरें बिछा रहे हैं। ऐसे में अपने ही राजनीतिक दल के युवा माने जाने वाले करिश्माई नेता सचिन पायलट के महत्वाकांक्षी इरादों को ध्वस्त करने के लिए मंझे हुए खिलाड़ी और राजनीतिक दांवपेंच के जादूगर अशोक गहलोत ने SOG का इस्तेमाल किया था। इसे सीधे सीधे सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग कहा तो जा सकता है लेकिन साथ ही कानूनी तौर पर असंवेधानिक नही कहा जा सकता है। क्योंकि लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए अपने खिलाफ ही जांच का आदेश देने की दलील भी दी जा सकती है। और लोकतंत्र में चुने हुए जनप्रतिनिधियों की चुनी हुई सरकार द्वारा लिया गया हर निर्णय, चाहे वो आपसी राजनीतिक मनमुटाव या अन्य कारणों से लिया गया हो, लेकिन हमेशा उसे जनहित से प्रेरित लिया गया फैसला ही माना जाता है। 

जनता 5 साल के लिए सरकार चलाने के लिए अपने प्रतिनिधि चुनकर भेज देती है।  ये बड़ी गहन विचार करने योग्य विषय है कि आखिर इस तरह के मुद्दे चुनावों के बाद क्यों उभर जाते हैं? इसे लोकतात्रिक व्यवस्था में खामी ही कहना होगा कि चुनाव जीतने के बाद चुने हुए जनप्रतिनिधियों के छुपे हुए राजनैतिक महत्वाकांक्षा जनता के सामने आती है। चुनाव जीतकर सिर्फ जनता के हितों की रक्षा की दिशा में सरकार को कार्य करना चाहिए। लेकिन कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि कोरोना महामारी के इस दौर में भी चुने हुए जनप्रतिनिधि कोई जैसलमेर की होटलों में, तो विधायकों का दूसरा धड़ा हरियाणा के रिसोर्ट में, तो अन्य दलों के देवस्थान दर्शन के नाम पर विधायक गुजरात में भेज दिए जाते हैं। क्या इन चुने हुए जनप्रतिनिधियों के इन सब कारनामों से जनता का भला होने वाला है? आखिर ये सब क्या हो रहा है और जनता मूकदर्शक बनी हुई रहती हैं? मीडिया लोकतात्रिक व्यवस्था के इस नंगे नाच को पैसे लेकर दिखाता है और जनता सिर्फ सतही जानकारी होने की वजह से कुछ समझ ही नहीं पाती है। दरअसल ये लोकतात्रिक व्यवस्था के नाम पर जनता के साथ मजाक चल रहा है। 

हमारे लोकतंत्र में खामियां हजारों की संख्या में है। लेकिन उन खामियों को दुरुस्त करने की नैतिक जिम्मेदारी जनता द्वारा अपने जनप्रतिनिधियों को चुनावों के माध्यम से सौंपी जाती हैं। दुर्भाग्यपूर्ण है कि जनप्रतिनिधियों को अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए जनहित कहीं नजर ही नही आता है।

 जनप्रतिनिधि अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा, सत्ता को कब्जे में रखने के लिए संवैधानिक व्यवस्था के मूल्यों का अवमूल्यन करके भी सत्ता की ऊंची कुर्सियों पर बने रहने की चाहत में जनता के प्रति उनकी जवाबदेही को जानबूझकर भूल जाते हैं क्योंकि उन्हें मालूम है कि जनता को भी लोकतात्रिक व्यवस्था में अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों का अहसास तक नहीं है। और इसके  गम्भीर नतीजे एक लोकतात्रिक समाज के रूप में जनता को चुकाने पड़ते हैं जब नेता रिसोर्ट पॉलिटिक्स का सहारा लेते हैं। आप सोचते होंगे कि सिस्टम ही ऐसा है तो अब क्या कर सकते हैं? जी नही बहुत कुछ किया जा सकता है। भारत के संवैधानिक दायरे में रहकर ही इस लोकतात्रिक प्रणाली में बदलाव करके जनप्रतिनिधियों को नही, बल्कि जनता को सही मायनों में ताकतवर बनाने की जरूरत है। 

स्वस्थ रहें, जागरूक रहें। जय हिंद।


Saturday 28 September 2019

Jammu & Kashmir beyond Article 370; A Stride to Glittering Future


The abrogation of article 370 & 35A was perceived by majority of Indians as an extremely bold political decision ever taken by any government in history of independent India. The spirited decision was momentous and long overdue for a very long time. The Prime Minister Narendra Modi once again vindicated his political perfectionist and courageous image built over the years in his public life. The assertive decision on highly controversial constitutional provisions proved willingness of current leadership of India to go extra miles towards national integrity, national security and for general distinctiveness of India. The BJP and allies have always had maintained Article 370 & 35A to be as a scar on Indian democratic system. The existence of article 370 had became national talking point after series of bold decisions like demonetization, Surgical Strike and Air strike on terrorist hotbeds in Pakistan were taken by Narendra Modi government. The Narendra Modi government kept national interests above political consequences, objectives and for that matter everything else while taking this historic decision. The BJP’s poll manifesto had clearly indicated their firm stands on Article 370 & 35A. So, it would be fairly unfair to call abrogation of these temporary constitutional provisions as impulsive and subjective political decision.

  The continuation of these temporary articles with Indian constitution for such an extended period itself was against constitutional moralities and also proved dissipated intentions of ruling political class for all these years. The many opponent political parties, despite political differences, had extended their support to the Government on this controversial issue for obvious cause of national integrity. All such opposition parties also need to be eulogized for displaying high level of political maturity on national integrity. The Indian constitution clearly describes inclusion of article 370 & 35A to be as temporary provision. The majestic win of Narendra Modi in 2019 elections had augmented and fueled hype over these concerns among the people and media equally. The decision has effectively symbolized Narendra Modi’s accepted political image in Indian political field.  
Since, special rights of J&K are part of history now and every possibility for drawing back on the matter is over and done with perpetually. There is no room for any hindsight on subject matter for the regime at the moment.  Hence, it must be accepted by one and all eternally that Jammu & Kashmir is now a regular Union Territory of India. The Government of India has also successfully taken international community onboard on the matter. Those handful individuals protesting against abrogation of such illicit constitutional provisions were real beneficiaries and were propagating separatist dogma in Kashmir by using such illegal constitutional provisions as shield. These so-called separatists and detached political class of Pakistan must now make peace with their elongated fantasy against India. The Indian regime will not bow down for few stray discontented elements who keep howling every now and then in the valley. The government is firm and am sure will not take any notice of such rogue elements in order to achieve larger democratic objectives for welfare of the people of the region.  The majority people in valley are rational and stand firmly with Government decision. These articles have stood against national integrity and have also dented democratic philosophy to an unparalleled level in the state of J&K. The common people of J&K were never any beneficiary party in the whole dirty game plan of such temporary articles. Hence, removal of these constitutional articles is rejoiced by majority of the citizens in the state. 

The underlying intention behind removal of these so-called special rights was an idea of empowering youth, women and every segment of society with concept of national integrity and distinct national identity.  The common people of state were hitherto overlooked and suppressed in J&K. The extended association of article 370 & 35 A with state had only safeguarded the interests of few mendacious dynasties political leaders of J&K and separatists groups of the valley. The wrongdoings of perfidious dynastical politics and treacherous separatists of the valley were fortified by means of these special rights. These groups thrived and enjoyed freedom of doing anything of their choice in the valley. The imprudence of Indian political class let politicians like Abdullahs, Muftis and separatists of J&K enjoy exemption from all Indian laws framed by the parliament. These articles also helped Pakistani political and religious establishments to disseminate anti-India doctrines in regular kashmiri youth through their stooges.  The narratives of separate identity for Jammu & Kashmir were sponsored by Pakistan and steadily flourished under these constitutional provisions. The Pakistan based political and radical religious fundamentalists who detest idea of India for its inclusiveness and economical affluence in the last few decades have emotionally blackmailed youth in the valley. The future of ordinary Kashmiri youth, humanity and national interests were destroyed by the monumental slip-ups made by our political leadership in New Delhi of endorsing such temporary articles in our constitution. 

The lack of infrastructure & industrialization and high rate of illiteracy & unemployment in the state enlightens about perfidious political objectives of political class of J&K. The successive state governments lead by self centric political parties had only labored for self gain and fulfilled their political objectives. The ordinary kashmiri population and their aspirations were deliberately overlooked for decades. The fanaticals among youth were purposely targeted by selfish influential local politicians of valley in order to fulfill their opinionated objectives. The innocent youth from ordinary background were utilized by crook politicians for fulfilling personal objectives and also brainwashed them on religious beliefs for many years. Consequently, dismayed by such ecosystem of state, many young individuals succumbed to these felon tricks and made to indulge in antinational activities. These articles created favourable ecosystem for and separatists and Pakistani hatemongering class for propagating their agenda of religious indoctrination. 

The people in valley need to think rationally and understand the ground realities that demands for separate identity for state of Jammu & Kashmir is an absolute baloney and also futile in new India. The fantasy harbored by politically motivated few individuals in valley has come to an end by abrogation of these articles. The unchallenged political adventurism of few mighty political parties in the state has been successfully chased down by single historical decision. The suppressed concerns and desires of kashmiri people will now be fulfilled by new political class with devoted mindset towards its people in the state. The changed political situation in state will sow seeds of new political generation with nationalist principles stamped to contribute greatly towards development of Jammu and Kashmir and its people.
 
The concept of propagating war against indian secular ideology with redical mindset can never be an accommodating and beneficial idea for Jammu & Kashmir’s future. The people need to realize that India is home to 2nd largest Islamic population in the world after Indonesia. The muslims across teh diffrent states are thriving and leading successful life with various types of businesses, Jobs and entrepreneurship in India. The new scenario in state will also change the fortune of people of J&K. The new avenues for development, tourism and employment opportunities will be generate positive environment for the people.  The peace in valley will prevail and class of self centric politicians will automatically be replaced with new political faces for representation of the people of state of Jammu & Kashmir. 

The Golden era of tourism will returned to state with current administrative efforts. The peace will triumph over clamor of separatism in the valley. The music of santoor will outmaneuver blares of guns and bullets. The apple gardens will be full of hustle and bustle with farming activities. The pristine new gusts of transformation and development will propel Jammu & Kashmir into greater orbits of success and accomplishment. The icy Gulmarg glaciers and mountains will see greater influx of tourists. The ordinary people in state will witness a new lease of life after new ambiance in surroundings. The new tourist spots and existing tourist spots will be renovated to attract more tourists in the valley. The prominent business families have also expressed their willingness for creating new business entities like IT parks, hotels, production facilities in the valley. The Indian laws which hitherto were not permitted in the state will now ensure better law and order situation for business and common people equally in the state.  The increased healthy economical activities and multiple employment opportunities for locals will increase per capita income of the state which will eventually change the mindset of youth of the valley. The militancy age will surely fade away from the state and glittering future is definitely in store for the people of Jammu & Kashmir.  

© Prakash Bishnoi, Petty Officer (Veteran)

Sunday 7 July 2019

प्रधानमंत्री जी से "मन की बात"

आदरणीय प्रधानमंत्री जी

नमस्कार

आपके पहले कार्यकाल में आपने काफी सकारात्मक परिणाम वाली नीतियां बनाई थी और दूसरा कार्यकाल शुरु होने से पहले मुझे ही नही पूरे देश को लगा था कि आप दूसरा कार्यकाल पाने की काबिलियत रखते है। हर भारतीय ने सोचा था कि आप वाकई ऐसी नीतियां बनाएंगे जो पूरे देश को बदलकर रख देंगी, मुझे आपकी काबिलियत पर अभी भी कोई संदेह नही है लेकिन आप हमेशा नीतियों का मूल्यांकन अवश्य कीजिये।

प्रधानमंत्रीजी, आपकी सार्वजनिक सभाओं में हमने हमेशा राष्ट्रवाद,हिंदूवाद, सनातन संस्कृति, सैनिकों के प्रति संवेदनशील होने के भाषण सुने हैं लेकिन बन्द कमरों में आपकी सरकार द्वारा बनाई गयी सरकारी नीतियां जब बाहर निकलकर जनता के सामने आती है तो वे आपके सार्वजनिक जीवन में दिए गए बयानों से एक दम पलटकर होती है।प्रधानमंत्री जी, आखिर ये ऐसा क्यों हो रहा है? प्रधानमंत्री जी क्या आपको नही लगता कि धार्मिक आधार पर तुष्टिकरण ने देश को बर्बादी के राह पर धकेला है और धर्म के आधार पर स्कॉलरशिप देकर आप भी उसी तरीके से देश को चला रहे है। आप भारत को 5 ट्रिलियन वाली अर्थव्यवस्था बनाना चाहते है ये सबके लिए गर्व की बात है लेकिन क्या पूंजीवाद आधारित अर्थव्यवस्था भारत के उन करोडों लोगों की उम्मीदों पर खरी उतर पाएगी जिन्होंने आपको बहुत उम्मीदों से प्रधानमंत्री पद तक पहुंचाया है? पूंजीवाद आधारित अर्थव्यवस्था भारत में गरीब और अमीर में बन खाई को और बढ़ा देगी।

बड़े बड़े थिंक टैंक, नीति आयोग, कई मंत्रालय जो सरकारी खर्च पर चल रहे है वो सब मिलकर भी देश निर्माण के लिए ऐसे सुझाव नही दे पा रहे है जो देश की जनता से सीधे संपर्क से मिल सकते है। हर सरकारी नीति का निर्माण थिंक टैंक और सलाहकारों के बजाय सीधे जनता से संवाद करके बनाई जाएगी तो बेहतर परिणाम देने वाली साबित होगी। किसानों, और मजदूरों को आज संभल प्रदान करने की जरूरत है। किसानों को फसल का उचित दाम मिले ये सुनिश्चित करना होगा और बिचौलियों को खत्म करना होगा ताकि महंगाई को काबू में किया जा सके । आज किसान द्वारा फसल के लिए किया गया खर्च भी वसूल नही हो पा रहा है। किसानों से बहुत कम दाम पर अनाज, फल और सब्जियों को बिचोलिये खरीदते हैं और शहरों में ऊंचे दाम पर आप जनता को बेचकर मोटा मुनाफा कमा लेते हैं। सरकार को किसानों के लिए कुछ इस तरह का इंतजाम करना होगा ताकि वो अपना फसल, अनाज, सब्जियां सीधे बाजार में बेच सके। इससे किसान को उचित दाम भी सुनिश्चित हो जाएगा और बिचौलियों का कब्जा भी धिरे धीरे कम हो जाएगा। फसलों का बीमा योजना का इस्तेमाल सिर्फ कंपनियों को मार्केट प्रदान करने का नही होना चाहिए आज फसल बीमा के नाम पर बीमा कंपनीयां किसानों का शोषण ही कर रही है। किसानों के लिए योजना बनाने वक्त सीधे किसानों से संवाद करने की जरूरत है।
सरकार को ऐसी नीतियों को बनाने पर जोर देना चाहिए जिससे गरीब, ।मजदूर, गाँव में अंतिम छोर पर बैठे व्यक्ति को फायदा मिल सके। देश का आर्थिक विकास होना चाहिये लेकिन उस विकास का क्या फायदा जो सिर्फ गिए चुने उद्योगपतियो तक सीमित न रह जाये इस दिशा में सरकारी कदम उठाए जाने चाहिए। सबको साथ लेकर चलना ही होगा वरना देश को विकास के राह पर चलाने के लिए कही गृह युद्ध जैसे हालात ना पैदा हो जाये।
सरकार द्वारा मूलभूत आवश्यकताओं पर ध्यान देंने की आवश्यकता है। समस्या को दरकिनार करके ज्यादा ही उलझा रहे है। समझदारी इसी में है कि समय रहते ही सुलझा लिया जाए।

आज देश मे आर्थिक विकास सिर्फ सरकारी फाइलों में दिख रहा है। बाज़ारों के हालात अच्छे नजर नही आते है। विजय माल्या, ललित मोदी, नीरव मोदी जैसे ना जाने कितने लुटेरे सरकारी नीतियों का फायदा उठाकर दूसरे देशों में बस गए उन्हें पैसे के दम पर कई देश नागरिकता भी देने को तैयार है। भारत सरकार को ऐसे कानून बनाने ही होंगे जो इस तरह के व्यापारियों पर कानूनी लगाम लगा सके और डेढ़ की अर्थव्यवस्था को बर्बाद होने से रोक सके।
इसमे कोई शक नही है कि भगोड़े उद्योगपतियों के द्वारा लुटाये पैसे की वसूली सरकार आम भारतीय की जेब से ही करेगी। क्या एक सामान्य भारतीय नागरिक होने के नाते ये बातें आपके समक्ष प्रस्तुत नही कर सकता।

भारत की जनसंख्या बहुत ही तेज रफ्तार से बढ़ रही है और धार्मिक कट्टरता भी उसी अनुपात में हावी हो रही है। क्या इसमे सरकार को विचार करके सख्त कानून नही बनाना चाहिए?
भारत सरकार में नीतियों का निर्माण का तरीका बदलने की जरूरत है। जनता की सामुहिक मंशा को धयान में रखकर ही नीति निर्माण होना चाहिए।
क्या इतना बड़ा देश सिर्फ ओलिंपिक में 2-4 मेडल ही जीतने लायक खिलाड़ी दे सकता है? सिर्फ नीतियों का प्रासंगिक नही होना ही मुख्य कारण है जो देश को नई ऊंचाइयों पर पहुंचने से रोक रहा है।
बहुत मुद्दे है लेकिन अब बस इतना ही लिखूंगा शायद ज्यादा लम्बा पत्र आ भी नही पढ़ेंगे।

@एक भारतीय नागरिक।

Saturday 6 October 2018

मिलावट का दौर और दूध की असली कहानी



पोस्ट को सिमित रखने के लिए बात सिर्फ दूध के उदाहरण तक ही सिमित रखूँगा. आप सोचिये देश की कितनी प्रतिशत जनता गाय भेंस पालती होंगी और उनमे से कितने दुधारू पशु होंगेे I मेरे पास इसके कोई आंकड़े तो नही है लेकिन जब शहरो और गावो में नजर डालता हूँ तो एक विचलित करने वाली तस्वीर उभरकर सामने आती हैi देश की दूध उत्पादन क्षमता एवं बाज़ार और शहरों में उपलब्ध करायी जाने वाली दूध की मात्रा में बहुत बड़ा फर्क है I दूध देश के हर परिवार के सभी सद्स्यों को चाहिए होता है और मिलावट के लिए भी सबसे आसान चीज भी दूध ही है. बस यही कारन है कि आज देश में दूध की कमी होते हुए भी कमी नजर नही आती है I कभी आपने सोचा है कि आखिर ये केसे संभव हो रहा है कि देश के हर परिवार, हर घर में, होटलों में दूध, पनीर, मख्खन और हर तरह की मिठाई जहाँ दूध की जरुरत पड़ती है सब जगह दूध बिना कोई विलम्ब के हर दिन सही वक्त पर दूध उपलब्ध करवाया जा रहा हैI
क्या वाकई हमारे देश में इतना दूध उत्पादन होता है ?
हैरानी तो ये सोचकर होती है कि जितना दूध गाय भेंसों से प्रतिदिन लिया जाता है उसका कई गुना दूध देश के शहरो और बाज़ारों में बेचा जा रहा हैI मिलावटखोरी की फेक्ट्रियां रात दिन चल रही है. लोकतान्त्रिक व्यवस्था में सरकारें अपना दायित्व निभाने में नाकाम रही है क्युकी चारित्रिक रूप से गिर चुकी जनता ही तो सबसे बड़ी गुनाहगार है I बड़ी कंपनियां भी इस गोरखधंधे में पीछे नही है. अमूल जैसी डेरी ब्रांड को सप्लाई करने वाले बहुत लोगों को मैं व्यक्तिगत रूप में जानता हूँ और मैं जानता हूँ कि वे किस तरह का दूध अमूल को सप्लाई करते है.
आप ही सोचे चाहे अकाल पड़े या आपदा आये, पशुधन में गिरावट आये इस देश में कमाल हो जाता है कि दूध सब जगह सही वक्त पर उपलब्ध करवा दिया जाता है. यहाँ तक की गर्मियों में जब पशुधन दूध कम देते है और उस वक्त शहरों और देश में दूध की खपत सबसे ज्यादा होती है, तब भी दूध की कमी की कोई खबर नही आती. भागदौड़ भरी जिंदगी में इन सबके बारे में सोचने का वक्त भला किस सज्जन के पास है? जिसको जहाँ से मिलता है दूध खरीद लेते है और फिर दूध के रूप में जहर का सेवन मजबूरन कर ही लेते है. आखिर हर कोई इन्सान तो किसी न किसी तरह की मिलावट में व्यस्त जो है i ढुलमुल लोकतंत्र का नाजायज फायदा उठाने वाले , खाने पिने की चीजों में जहर घोलने वालें पैसे के मोह में पूरी मानवता का नाश करने पर तुले हैI सरकारी नियमो और कानूनों का डर तो छोड़ो ऐसे लोगों को तो भगवान का डर भी नही है. बहुत गहरे मन से सोचने पर भी मुझे मेरे सवाल का जवाब नही मिला कि आखिर कोई भी इन्सान आज मस्त मौला बनकर मानव जीवन को क्यों नही जी लेना चाहता है. मुझे लगता है लक्ज़री जिंदगी की चाहत में आज का इन्सान मनुष्य जीवन का सुकून खो चूका हैI आज के इन्सान की ये सोच कितनी मुर्खता है और कितनी स्मार्टनेस, ये फैसला आप ही करें.
@प्रकाश बिश्नोई, PO (से. नि.)

Wednesday 5 September 2018

बिश्नोई और सिख धर्म का तुलनात्मक अध्ययन


बिश्नोई समाज की स्थापना 1485 में हुयी थी और सिख धर्म की स्थापना 1469 में हुयी थी I गुरु नानक जी ने सिर्फ 16 साल पहले सिख समाज की स्थापना की थी I लेकिन आज 550 साल बाद जब हम दोनों की तुलनात्मक अध्ययन करते है तो पाते है कि सिख समाज आज बिश्नोई समाज से हर क्षेत्र में कोशों आगे निकल चुका है I आज सिख समाज को एक अल्पसंख्यक धर्म का दर्जा प्राप्त है I आज सिख समाज सम्पन्नं, सफल और राजनितिक रूप से बहुत रसूखदार समाज है I सिख समाज के अनुयायियों में से भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक बने है I सिख धर्म के अनुयायी भारतीय सेना और वायु सेना के अध्यक्ष भी रह चुके है और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश भी रहे है I राजनेताओ, प्रशासनिक और सैन्य अधिकारियो से तो सिख धर्म भरा पड़ा है I सिख समाज के व्यवसायी दुनिया भर में विख्यात है I कनाडा तथा कई और देशो में सिख धर्म के लोग मंत्री और सरकारी सेवाओ में बड़े पदों पर सेवा दे रहे है I सिख धर्म के लोगो ने दुनिया के लगभग हर देश और हर बड़े शहर में अपने गुरूद्वारे स्थापित किये है और अन्य धर्मो के साथ बड़े तालमेल से रहते है I

आपने कभी सोचा है कि आखिर कैसे हमारे समाज का एक समकालीन समाज सफलता की अनगिनत सीढियां चढ़ने में कामयाब हो गया और बिश्नोई समाज से मीलों आगे कैसे निकल गया? आखिर सफलता की इस कहानी के पीछे कोई तो वजह रही होगी I लगभग ५०० साल के इस सफ़र में सिखों ने सफलता की ऐसी इबारतें लिखी है जो किसी अन्य समाज में देखने को नही मिलती है I हमे किसी और धर्म से तुलना करना उचित प्रतीत नही लगता लेकिन सिख धर्म तो हमारे समकालीन रहा है तो फिर क्यों ना हम तुलनात्मक अध्ययन करके अपने जीवन में सफल होने के लिए कुछ अपनाये और उनसे सीखे I मेरी अध्ययन के अनुसार सिख धर्म को इतना आगे ले जाने के पीछे सबसे बड़ी वजह उनका सामूहिक और सामाजिक सोच रही है I सिखों ने अपने समाज का विस्तार हर क्षेत्र में किया है लेकिन उन्होंने अपनी आस्था, श्रधा को भर्मित नही होने दिया और न ही कम होने दिया और हमेशा अपने गुरु और गुरुद्वारों के प्रति विश्वास और आस्था बनाये रखी है I यकीं मानिये उनकी इसी सामाजिक सोच ने सिखों को इतने ऊँचे मुकाम हासिल करवाए है I वे कहीं भी रह रहे हो उनके लिए आस्था और श्रधेय का विषय गुरुग्रंथ साहिब ही रहा है I उन्होंने अपने आस्था के विषयों को कभी तर्क वितर्क का विषय नही बनने दिया I सिखों की सामूहिक और सामाजिक सफलता की मुख्य वजह भी ये ही रही है I सिख समाज में हर कोई अनुयायी गुरु के सेवक है और १० गुरुओ के अलावा उनका गुरु सिर्फ गुरु ग्रन्थ साहिब है I सिख धर्म में चाहे किसी अनुयायी ने कितना ही बड़ा सामाजिक या सरकारी पद हासिल किया हो वो समाज और गुरुग्रन्थ साहिब के आगे वो महज एक अनुयायी ही है इससे ज्यादा कुछ नही I इसी प्रकार की सोच समाज में हर इनसान को बराबर का दर्जा परदान करती है I वे मेहनत में यकीं रखते है कोई शोर्ट कट से धन कमाना उनकी शिक्षाओ में नही है I गुरुद्वारों में मानवता वाद को बढ़ावा दिया जिसकी वजह से उनकी सोच विकसित हो गयी और वे जातिगत भेदभाव करने से बच गए I मानवतावाद, बड़ी सोच और धार्मिक नियमो के प्रति आस्था ने उन्हें आज इस शोहरत की बुलन्दियो तक पहुँचाया है I वे सामाजिक कर्तव्यो को उतना ही महतवपूर्ण समझते है जितने गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारियों को मानते है I  

जब हम दुसरे धर्म की अपने से तुलना करते है तो स्वयम का आकलन करना बहुत जरुरी हो जाता है I प्रकृतिप्रेमी समाज के रूप में गौरवशाली इतिहास के बावजूद समय के साथ आखिर केसे कुछ विकार हमारे समाज में पनप गये जिन्होंने बिश्नोई समाज की सोच को विकसित नही होने दिया I किसी भी समाज की सबसे बड़ी भूल अपने प्राथमिक मूलभाव से भटककर पथभ्रष्ट होना होती है I और बदकिस्मती से ये ही गलती हमारे समाज में लगातार हो रही है I जहाँ हर बिश्नोई को अपने नियमो के प्रति समर्पित रहकर श्रधा रखनी चाहिए थी व्ही हमने हमारे गुरु की सीख को ही तर्क वितर्क का विषय बना दिया और समय के साथ अपने धार्मिक नियमों से मुह मोड़ लिया I परिणाम स्वरुप समाज की मुलभुत शिक्षाओं को भुला दिया गया I आप सब इस प्रकार की चीजो से वाकिफ तो होंगे ही इसलिए जयादा विस्तार से न कहकर इतना कहूँगा कि समाज में आज वो सब हो रहा है जो गुरु महाराज की शिक्षाओं के एकदम विपरीत है I सिख धर्म का युवा अपने धर्म के प्रति आज भी उतना ही समर्पित है जितने उनके पूर्वज थे Iजबकि हमारे समाज के युवा असल में ऐसा नही है I

 आज तक सिख समाज ने जो भी हासिल किया है वो सिर्फ और सिर्फ अपने धार्मिक आस्था, श्रधा और समर्पण की वजह से प्राप्त किया है I धर्म के प्रति सम्मान ने उन्हें एक समुदाय से धर्म तक का दर्जा दिलवा दिया और हमारा धर्म भी उनके साथ ही स्थापित किया गया था लेकिन आज भी हम एक जाति मात्र है I और हकीक़त तो यह है की हम अपने अस्तित्व को बचाने में भी असफल हो रहे है I समय के साथ हमे अपनी धार्मिक मान्यताओं को और मजबूती से अपने जीवन में आताम्सात करने की जरुरत थी लेकिन एक समाज के रूप अपनी मान्यताओ से भटककर गये और भटके समाज ने गलत रह पकडकर अपना खूब नुकसान करवाया है I अब तो कम से कम ये सीख लेने की जरुरत है और गुरु जाम्भोजी की बताई अति उत्तम और नेक जीवनशैली को जीवन में आदर्श के रूप में अपनाने की आवश्यकता है I आज के बिश्नोई समाज में व्यापत कथाओ के दौर ने गुरु महाराज की आदर्श शिक्षाओ को लगभग भुला दिया है I मैं किसी के धार्मिक विचारो को ठेस नही पहुंचाना चाहता हू लेकिन एक बात को कहना चाहता हूँ किलेकिन कोई किसी एक लोक देवता का गुण गान करता है तो कोई किसी दुसरे लोकदेवता का लेकिन ये कथाकार गुरु महाराज की शिक्षाओं पर जानकारी भी नही रखते है I कथाकारों और उनके फूहड़ गानों के इस्तेमाल ने गुरु महाराज जाम्भोजी की बहुत गहरी शिक्षाओ को हासिये पर धकेल दिया और उन्हें भुलाकर बिश्नोई समाज की एक अलग ही पहचान बना दी है I सिख धर्म में सिर्फ और सिर्फ गुरुग्रथ साहिब का अरदास होता है उन्हें किसी दुसरे धर्म से कोई द्वेष नही है लेकिन उनके लिए गुरु ग्रंथसाहिब ही सर्वोतम है I हमारे जीवन में भी श्ब्द्वानी और २९ नियमो का स्थान सर्वोपरि होना चाहिए I एक बिश्नोई व्यक्ति का जीवन दर्शन २९ नियमो से प्रेरित होना चाहिए I गुरु महाराज जाम्भोजी की उत्तम जीवन शैली हर विश्नोई के दिल में एक सकारात्मक उर्जा का संचार कर सकती है I समाज को आपस में जोड़े रखने तथा समान मानसिकता को विकसित करने में गुरु महाराज जाम्भोजी की शिक्षाए मात्र ही अहम रोल निभा सकती है. एकरूप मानसिकता एक मजबूत समाज की नीव रखती है और एक मजबूत समाज आज के आधुनिक युग में सफल होने के लिए आवश्यक है I आज के युग की दुनिया बहुत भ्रामक है और सनमार्ग से भर्मित करने के लिए अनगिनत तरीके जीवन की राह में आपका इन्तेजार कर रहे है I बिश्नोई समाज के हर इन्सान को ये समझ लेना अति जरुरी है कि सिर्फ और सिर्फ गुरु महाराज की शिक्षाओं के प्रति समर्पण ही उनके जीवन को सरल और सुगम बना सकता है और ये सरल और सुगम जीवन ही आपकी किसी भी क्षेत्र में व्यक्तिगत सफलता के लिए मार्ग प्रशस्त करता है I सिखों ने इस बात को बखूबी समझा और आज वे एक समृद्ध, संपन्न और शक्तिशाली समाज के रूप में उभर पाए है I मुझे उम्मीद है बिश्नोई समाज का हर युवा अपने आपको दुनियाभर में फैली विभिन्न प्रकार की कुसंग्तियो से बचकर गुरु जाम्भोजी की बताई राह पर चलकर समाज को प्रेरित करेगा और हमारा समाज भी शौहरत की नयी इबारतें लिखने में कामयाब होगा I हर एक बिश्नोई की व्यक्तिगत सफलता में ही बिश्नोई समाज की सफलता निहित है I


@ Prakash Bishnoi, PO(Retd), IN

बेलगाम भारतीय नौकरशाही

              बेलगाम नौकरशाही  भारत के पहले गृह मंत्री सरदार पटेल ने नौकरशाही को देश का "Steel Frame कहा था । लेकिन समय के साथ वो "...